Monday, January 21, 2013

यादों की लाशें ..

अधमरी सी सुबह में

तुम्हे बर्फ में लाशें खोजते देखा

कल रात क्या हुआ

कुछ बताओगी

तुम्हारी ऑंखें खुली हुई थीं

पर होश में नहीं लग रही थी तुम

सहमी हुई तो नहीं

पर बिखरी हुई लग रही थी

क्या हुआ अगर वो नहीं रहा

और आएंगे

तुम्हरे ज़हन में बरसों से जमी बर्फ से

उसकी यादों की लाशें मत उखाड़ो ..

4 comments:

  1. Wah!! Dil ki surkh padi satah ko bakhoobi chhoo liya aapne... :)...

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  2. yadon ki lashein mat ukhado...saar yahi hai zindagi ka! bahut khoobsurat :)

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  3. yaadon ki lashein ukhat toh jati h lekin juda nai hoti..
    Again very well written.. :)

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  4. Wish the psycho-emotional threads would have been this simple to unknot it to peace by mere ignoring it.

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Thank you for taking time out to comment on this creation. Happy Reading . Please revisit.