भीड़ में हसते चेहरे
खोये खोये बदहवास चेहरे
झूठ बोलते चेहरे
प्यार के वादे करते चेहरे
मुझे अकेला देख अपने अकेलेपन से डरते चेहरे
उसी डर को छुपाने को किसी और का हाथ पकड़ मुस्कुराते चेहरे
छोटे लकड़ी के ठेलों के पीछे खड़े उदास चहरे
उन्ही ठेलों पर बेफालतू बातें बनाते चेहरे
अपनी रोजी रोटी कमाने में मशगूल चेहरे
तरह तरह के चेहरे दिखते हैं बाजार में
सब में बस एक समानता होती है
सच से होते हैं अनजान ये चेहरे
bas yuhi bheed mein milte, bichedte aur gum hote chhere! :)
ReplyDeletecorrect.. n very nice
ReplyDeletevery true n nice written.. :)
ReplyDeletereminds me of a very nice poem 'Galiyaan' by some great poet. Another nice poem coming out from you. .
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