Tuesday, February 9, 2010

बसंत

रे बसंत ! ये हवा कहाँ से ले आया
मंद मंद मनमोहक सी ये
गंध कहाँ से ले आया ,
पतझड़ से व्याकुल वृक्षों पर
अब नवजीवन की कोपल है ,
रे बसंत ! इस मृत जीवन के
प्राण कहाँ से ले आया !!

प्रकृति प्रसन्न मन आनंदित
हर्षित पुलकित नर नारायण ,
कोयल की कूहू कूहू से
अब चहक रहा है चंचल मन ,
रे बसंत ! मनभावन ये
संगीत कहाँ से ले आया !!
कांतिहीन इस चेहरे की
मुस्कान कहाँ से ले आया ,
ॐ आनंदमय ॐ शांतिमय
चरितार्थ हो रहा हर क्षण है ,
रे बसंत ! इस व्यथित ह्रदय का
चैन कहाँ से ले आया ,
रे बसंत ! इस नवजीवन का
सन्देश कहाँ से ले आया !!