Tuesday, June 19, 2012

माँ भारती का क्रोध

मेरी चीत्कार से भी न खुली


जो आखें उनको बंद कर दो

मेरी रक्षा में उठे न जो

वो हाथ अपने छिन्न कर दो

कभी मेरे  ही आँगन में जो खेली

वो जवानी नष्ट कर दो

भ्रष्ट है सारी ही दुनिया

अब प्रलय का संधान कर दो

राम के तरकश में देखो

तीर अब भी अनगिनत हैं

कर दो चढ़ाई निडर हो

कलियुगी मानव पे अब तो

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