Thursday, June 14, 2012

सबको अपना काम बे-आराम करते देखता हूँ

समंदर की लहरों को देखता हूँ


बिना थके

इधर से उधर उधर से इधर

छप्प्क छप्प्पक जूम sssssrsrrrr



उगते सूरज को सुबह और

डूबते को हर शाम देखता हूँ

चंदा की भी वही कहानी है

बस उसको बेमतलब आवारा

बिना काम देखता हूँ

नदिया की लहरों का

क्या कहूँ

उसको तो बस इक तरफ दौड़ते

हर मौसम आम देखता हूँ



उन हसते हुए फूलों को देखो

हसते खिलखिलाते

कली से उन्हें मुरझाते तमाम देखता हूँ

धरती मैय्या का बलिदान देखो

हमे अपने ऊपर धोते

घुमडैया घुमडैया खेलते

थक कर बे-आराम देखता हूँ

2 comments:

Thank you for taking time out to comment on this creation. Happy Reading . Please revisit.