Sunday, March 6, 2011

तुम्हारी दोस्ती

रेत के घरौंदे बनाना बड़ा अच्छा लगता है
तुम्हारे साथ कल के सपने सजाना अच्छा लगता है
तुम्हारे सामने जाने क्या हो जाता है मुझे
तुम्हे अपनी जिंदगी के किस्से सुनाना अच्छा लगता है ..


तुम्हारी बातें फूलों सी लगती हैं
उन्हें ख्वाबों के गुलदस्तों में सजाना अच्छा लगता है
भीड़ में भी कितना अकेलापन लगता है
बहुत दूर हो कर भी तुम्हारा नाम ले ऐसे हे बुलाना अच्छा लगता है ..


चांदनी की चमकदार चादर फैली हो जैसे
मुझे देख तुम्हारी आँखों में चमक आना अच्छा लगता है
तुम्हारी दोस्ती किताब में रखे गुलाब सी है
हर दिन पन्ने पलट उसे एक टक निहारना अच्छा लगता है ..

7 comments:

  1. wooow bhaiya...this is got to be coming out of some place in ur heart...loved it!!!

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  2. hey bhai...
    itna accha poem kaise likh lete ho.....
    its a creation that ll be close to heart...
    thanks for tagging me... :)))

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  3. चांदनी की चमकदार चादर फैली हो जैसे
    मुझे देख तुम्हारी आँखों में चमक आना अच्छा लगता है
    तुम्हारी दोस्ती किताब में रखे गुलाब सी है
    हर दिन पन्ने पलट उसे एक टक निहारना अच्छा लगता है .
    Badi sundar,roomani rachana!

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Thank you for taking time out to comment on this creation. Happy Reading . Please revisit.