सूखे पेड़ों की डालों पर लगे सूखे पत्तों में
हवा के थपेड़ों से कटे पथ्थरों के जख्मों में
बरसों बारिश की एक बूँद को तरसी धरती की दरारों में
और
किसी मासूम के चेहरे की उडी रंगत में
जाने क्या ढूंढता हूँ...
अख़बारों के पन्नों को घूरती निगाहों में जाने क्या ढूंढता हूँ
मंदिर के आगे लगी लाइन में थके चेहरों में
राह में भटके राही की हांफती सांसों में
और
चिलचिलाती धूप में थके किसान की असमान की ओर टकटकी लगायी आखों में
जाने क्या ढूंढता हूँ ...
दो पत्थरों के बीच सकुचाई नदी के रुके बहाव में जाने क्या ढूंढता हूँ
लड़ाई के मैदान में अपने बच्चे की चिट्ठी पढ़ते जवान की लड़खड़ाई जबान में
ठण्ड से थरथराती वृद्धा की आह में
और
अपने प्रेमी से बिछड़ी प्रेमिका की फैली बाँहों में
जाने क्या ढूंढता हूँ ..
............................................ आस , इक उम्मीद शायद .............................................................
दो पत्थरों के बीच सकुचाई नदी के रुके बहाव में जाने क्या ढूंढता हूँ
ReplyDeleteजंगे मैदान में अपने बच्चे की चिट्ठी पढ़ते जवान की लड़खड़ाई जबान में
ठण्ड से थरथराती वृद्धा की आह में
और
अपने प्रेमी से बिछड़ी प्रेमिका की फैली बाँहों में
जाने क्या ढूंढता हूँ ..
Kya gazab likha hai!
Kaheen,kaheen wartani sudhar len to sone pe suhaga ho jay!
Thank You Kshama .. Please bataiye ki kaise sudhar sakta hun ..
ReplyDeleteBeautiful...!
ReplyDeletestarted my day with this lovely composition...
ReplyDeletezindagi me kabhi na kabhi har insaan zarur apne aap ko is poem ki lines me payega....
:))
Oh! Wah!Harek shabd chuninda,harek pankti khoobsoorat!
ReplyDeleteWow, Rishi boy, what to say, you just mesmerized me with your poetry.....
ReplyDeleteDats... Simply awesome... Apke is blog pe aapne kaafi samay baad likha hai...Happy writing.. :)
ReplyDeleteEk khoj samarpit kardi is dil ke naam...
ReplyDeleteAb aapki panktiyon main makaam dhoondta hoon...
Hum sab hi saath hain is safar main par...
Humsafar ki nigaahon main jaane kya dhoondta hoon...
The poem has instilled a new desire in me to write again :)...