Wednesday, October 7, 2009

कुछ बात कह दो

कुछ बात कह दो
कुछ खास ना सही, कुछ बकवास ही कह दो
काहे को मुह फुलाए बैठे हो
चांद की ना सही तारो की हे बात कह दो

खामोशी से डर लगता है मुझे ,
मेरे दिल की ना सुनो पर
अपने दिल की ही बात कह दो

बोल न सको किसी झिझक से
किसी डर से या
किसी और कारण से तो
झुका के नजरे धीरे से आंखों से आंखो की बात ही कह दो

मैं ये नहीं कहता कि
गुमनाम या बेआवाज है मेरी शायरी
शायराना अंदाज न सही
रूखी बातों मे ही वो बात कह दो

1 comment:

Thank you for taking time out to comment on this creation. Happy Reading . Please revisit.