हर रात अकेला बैठा किताब के पन्ने पलटता हूँ ,
आज भी कोई अलग नहीं
कोई आहट भी तो नहीं होती आँगन में ,
दरवाजे पर कोई कान लगाये सुन तो नहीं रहा है ,
झटपट पलट देखता हूँ ,
कहीं तुम तो नहीं ,
तम्हारी मुझे डरा देने की आदत कभी जाएगी नहीं,
पर अच्छा है ,
हाथ में कलम लिए पन्नों को घूर रहा हूँ कब से ,
अल्फाज़ मिल नहीं रहे हैं जैसे,
दो ही तो थीं जो मुझे जिन्दा रखे थीं ..
तुम और मेरी कवितायेँ..
दोनों एक साथ चली गयीं कहीं ..
आ जाओ बस आखिरी बार सही ,
एक छोटा सा चीटा बार बार दौड़ मेरी और आ रहा है ,
कहीं तुमने तो नहीं भेजा उसे ,
क्या बकवास !
पागल हो गया हूँ लगता है ,
आज तो गली में कुत्ते भी नहीं भोंक रहे हैं ,
उन्हें भी पता है
कोई फायदा नहीं,
ऐसे भी जग ही रहा हूँ मैं ,
क्या करूँ ; तुम्हारी याद सोने ही नहीं देती !!
आज भी कोई अलग नहीं
कोई आहट भी तो नहीं होती आँगन में ,
दरवाजे पर कोई कान लगाये सुन तो नहीं रहा है ,
झटपट पलट देखता हूँ ,
कहीं तुम तो नहीं ,
तम्हारी मुझे डरा देने की आदत कभी जाएगी नहीं,
पर अच्छा है ,
हाथ में कलम लिए पन्नों को घूर रहा हूँ कब से ,
अल्फाज़ मिल नहीं रहे हैं जैसे,
दो ही तो थीं जो मुझे जिन्दा रखे थीं ..
तुम और मेरी कवितायेँ..
दोनों एक साथ चली गयीं कहीं ..
आ जाओ बस आखिरी बार सही ,
एक छोटा सा चीटा बार बार दौड़ मेरी और आ रहा है ,
कहीं तुमने तो नहीं भेजा उसे ,
क्या बकवास !
पागल हो गया हूँ लगता है ,
आज तो गली में कुत्ते भी नहीं भोंक रहे हैं ,
उन्हें भी पता है
कोई फायदा नहीं,
ऐसे भी जग ही रहा हूँ मैं ,
क्या करूँ ; तुम्हारी याद सोने ही नहीं देती !!
Uf! Bada dard bhara pada hai is sarvang sundar rachana me!
ReplyDeleteBehad sundar rachana!
ReplyDeleteU have described one moment of wait and a life time of agony! Beautiful
ReplyDeletei predict two things from the poem....
ReplyDelete1st... u hae very well described the scenario around ur house in ur lines... as i hv exeperienced it i can vouch for it... :)
2nd..... ahem ahem... haan bhai... jise khoj rahe ho... wo insaan jald hi milega... i hope u got what i mean bro....
p.s. personally i think its quite difficult to compose these kinds of poems.... nice job bhai.... :)
Bhaiya, Bahut mast likha hai.. and wid reference to Utki bhaiya, I hope its milegi and not milega .. ;)
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