Tuesday, April 5, 2011

देशद्रोही

मातृभूमि की कोख में बढ़ कर
रे अधम नीच ये क्या कर बैठा
जिस आँचल तेरा बचपन खेला
उसको ही मैला कर बैठा ??

दर्पण में कैसे देखेगा
रे मुर्ख कभी तू अपना ये मुख
जिस थाली में क्षुधा मिटाई
उसको ही छलनी कर बैठा ?

मान भूल गया अपना तू क्या
अरि को ही अपना कर बैठा
रे दुष्ट न बन वो कायर जो
राष्ट्र मान बौना कर बैठा ...

13 comments:

  1. bhaiya this is one of ur best creations.... because the words are very familiar and simple .... anyone can understand the theme.... in one of ur older poem i had to read a para 2 times... :P:P
    but this is just too good to read and might be too good to hear :)
    keep it up.. :))

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  2. very well written. I liked the way the tone and the anger is expressed in the poem. :-)

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  3. O Man...!!! I really liked this one....I never knew this Rishi inside you....Gr8 to discover it...!!

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  4. ऋषिकान्त जी बड़ी मुस्किल में आपका नाम ढूंढ पाया मैं...आखिर इंजीनियर जो ठहरे ....
    आपके भाव बहुत गहरे हैं
    बस शिल्प को थोड़ा और तराशने कि जरूरत है भाषा और शब्दों के चयन पर थोड़ा सा और ध्यान दीजिये ...बिना मांगे सलाह देने के लिए माफ़ी चाहता हूँ.

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  5. द्विवेदी जी
    धन्यवाद्.. आपकी सलाह मैं ध्यान में रखूँगा.. भाषा के सुधार और शब्दों के चयन पर ध्यान देने के लिए अगर कोई तरीका हो जो मैं अपना सकूँ तो जरुर बताएं .. क्यूँ की मैं बहुत समय से मैं हिंदी साहित्य से दूर रहा हूँ शायद काम की वजह से तो भाषा पर पकड़ कम हुई है .. काफी मौकों पर ऐसा लगता है की मैं अपने विचारों के लिए शब्द नहीं खोज पा रहा हूँ ..
    मेरी और भी कृतियाँ देखिये और टिपण्णी कीजिये ..

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  6. Great work Bhaiya...pretty relevant in today's times

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  7. Great vocab Bhaiya ...pretty relevant in today's times

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Thank you for taking time out to comment on this creation. Happy Reading . Please revisit.