खोये वो चार दिन 
ख़ुशी के 
हस के गले लगते अपनों के 
विपदा में एक दूसरे का हाथ थामने को आतुर
 चीखते चिल्लाते ,घर के छोटे बच्चों के ..
 खोये वो चार दिन अखियों में सजाये सपनों के .. 
 
खोये वो चार दिन 
मेरे तुम्हारे साथ के 
हाथों में हाथ के
 इस शोर में खोयी 
मेरी तुम्हारी हर बात के 
खोये वो चार दिन तुमसे लड़ने के और तुम्हारे प्यार के ..
 खोये वो चार दिन
 गुड़िया के बचपन के 
उसके पहले जन्मदिन की 
तोहफों की बरसात के 
आँगन बिखर गया है सारा 
खोये वो चार दिन हसी ठठ्ठो और गुड़िया की किलकार के .. 
Thursday, March 31, 2011
Sunday, March 6, 2011
जिंदगी के रास्ते टेढ़े मेढ़े हैं
जिंदगी के रास्ते टेढ़े मेढ़े हैं
जहाँ न चाहो रुकना वहां ख़तम होजाते हैं रास्ते
साथ न छोड़ने का वादा सबका झूठा है 
इन रास्तों पर सफ़र ख़तम हो जाये कब किसका 
किसको है पता 
दूर की तो सोच भी नहीं सकते 
अगले मोड़ के आगे जाने क्या है 
जिंदगी के रास्ते टेढ़े मेढ़े हैं....
तुम हमसफ़र की सोचते हो बेकार 
राह में बिछड़ जाते हैं हमसफ़र 
जब न चाहो अलग होना साथी से 
तभी बदल जाती हैं मंजिलें 
मंजिलें अलग चाहे कितनी हों सबकी, सफ़र ख़तम होता ही है 
अपनी रफ़्तार रोक कर मुड़ सको तो जानोगे
तुम हमसफ़र की सोचते हो बेकार ..
तुम्हारी दोस्ती
रेत  के  घरौंदे   बनाना  बड़ा  अच्छा  लगता  है  
तुम्हारे  साथ  कल  के  सपने  सजाना  अच्छा   लगता  है  
तुम्हारे  सामने  जाने  क्या  हो  जाता  है  मुझे 
तुम्हे  अपनी  जिंदगी  के  किस्से  सुनाना  अच्छा  लगता  है  .. 
तुम्हारी  बातें  फूलों  सी  लगती  हैं 
उन्हें  ख्वाबों  के  गुलदस्तों  में  सजाना  अच्छा  लगता  है  
भीड़  में  भी  कितना  अकेलापन  लगता  है  
बहुत  दूर  हो  कर  भी  तुम्हारा  नाम  ले  ऐसे  हे  बुलाना  अच्छा  लगता  है  ..
चांदनी  की  चमकदार  चादर  फैली  हो   जैसे 
मुझे  देख  तुम्हारी  आँखों  में  चमक  आना  अच्छा  लगता  है  
तुम्हारी  दोस्ती  किताब  में  रखे  गुलाब  सी  है  
हर  दिन  पन्ने  पलट  उसे  एक  टक  निहारना  अच्छा  लगता   है  .. 
Wednesday, March 2, 2011
.......
दूर वीराने में जाने क्या ढूंढता हूँ 
सूखे पेड़ों की डालों पर लगे  सूखे पत्तों में
हवा के थपेड़ों से कटे पथ्थरों के जख्मों में
बरसों बारिश की एक बूँद को तरसी धरती की  दरारों में 
और 
किसी मासूम के चेहरे की उडी रंगत में 
जाने क्या ढूंढता हूँ...
अख़बारों के पन्नों को घूरती निगाहों में जाने क्या ढूंढता हूँ 
मंदिर के आगे लगी लाइन में थके चेहरों में 
राह में भटके राही की हांफती सांसों में
और
चिलचिलाती धूप में थके किसान की असमान की ओर टकटकी लगायी  आखों में
जाने क्या ढूंढता हूँ ...
दो पत्थरों के बीच सकुचाई नदी के रुके बहाव में जाने क्या ढूंढता हूँ 
लड़ाई के मैदान में अपने बच्चे की चिट्ठी पढ़ते जवान की लड़खड़ाई जबान में 
ठण्ड से थरथराती वृद्धा की आह में 
और 
अपने प्रेमी से बिछड़ी प्रेमिका की फैली बाँहों में 
जाने क्या ढूंढता हूँ .. 
............................................ आस , इक उम्मीद शायद .............................................................
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