Monday, April 26, 2010

कुछ

मजबूर सा हूँ मैं
वक़्त के हाथ कुछ
इतिहास यूँ
ही लौट आता है
मेरे
जब पास कुछ
सोच
लेता हूँ सदा
कर पायेगा
न ये इस बार कुछ
फिर
वही होता है
जो
होता रहा है
सालों से कुछ
मैं
खड़ा रह जाता हूँ
दंग
यूँ मजबूर कुछ
चाह के भी
छोड़ पता नहीं
मैं
दामन दर्द का
हर बार सा
इस बार भी
लिख गया ऐसा
इतिहास कुछ

बाँध बैठा हूँ मैं
दिल को
कच्चे धागों से तेरे
इस कदर तेरी जुदाई
ले गयी
मेरे दीवानेपन का
इम्तेहान कुछ
एक अजब सा ही नशा है
इन्तेजार का तेरे
इस बार जो
तुम गए
बढ़ गया मेरे
दर्द का एहसास कुछ

3 comments:

  1. एक अजब सा ही नशा है
    इन्तेजार का तेरे
    इस बार जो
    तुम गए
    बढ़ गया मेरे
    दर्द का एहसास कुछ
    Bahut sashakt rachana hai!

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  2. kya baat hai,bahut dinon se likha nahi is blogpe?

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  3. Kya baat hai? Bahut din ho gaye aapne kuchh nahi likha?

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Thank you for taking time out to comment on this creation. Happy Reading . Please revisit.