Tuesday, February 9, 2010

बसंत

रे बसंत ! ये हवा कहाँ से ले आया
मंद मंद मनमोहक सी ये
गंध कहाँ से ले आया ,
पतझड़ से व्याकुल वृक्षों पर
अब नवजीवन की कोपल है ,
रे बसंत ! इस मृत जीवन के
प्राण कहाँ से ले आया !!

प्रकृति प्रसन्न मन आनंदित
हर्षित पुलकित नर नारायण ,
कोयल की कूहू कूहू से
अब चहक रहा है चंचल मन ,
रे बसंत ! मनभावन ये
संगीत कहाँ से ले आया !!
कांतिहीन इस चेहरे की
मुस्कान कहाँ से ले आया ,
ॐ आनंदमय ॐ शांतिमय
चरितार्थ हो रहा हर क्षण है ,
रे बसंत ! इस व्यथित ह्रदय का
चैन कहाँ से ले आया ,
रे बसंत ! इस नवजीवन का
सन्देश कहाँ से ले आया !!

3 comments:

  1. Hello Rishi,

    Amazing Poem this time... I really appreciate this time's effort from bottom of my heart...Awesome consistency thought out...this time its rhyming too :-D...great selection of wrds...when i read it,i could not say "this is not written by a professional hindi poet"...
    Good job ... Keep it up buddy :-)

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  2. रे बसंत ! इस व्यथित ह्रदय का
    चैन कहाँ से ले आया ,
    रे बसंत ! इस नवजीवन का
    सन्देश कहाँ से ले आया !!
    kya baat hai!Basant ka kitna sundar swagat hai..

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  3. Ekse badhke ek rachna hai...!Kamal hai!

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Thank you for taking time out to comment on this creation. Happy Reading . Please revisit.