Tuesday, April 7, 2015

सागर, धरती और बादल

 
 

सागर की लहरों पर तैरते बादलों के टुकड़े देख
 मैं समझ नहीं  पाया उनका साथ
  कितने दूर लगते थे  ज़मीन से उनके रिश्ते
   दूर क्षितिज पर ही मिलते होंगे ये  सोचता था मैं
    रेतीले किनारों पर धरती ने सागर को  बांध रखा है ऐसे 
     कि बादलों से सागर को कभी मिलने न देगी जैसे
मैं आसमान में बैठा देखता हूँ  ये सब
  लहरों की छटपटाहट
   रेत पर उसकी धरती से लड़ाई
     धरती से अपना हाथ छुड़ाने के उनकी कोशिश
       कि मिल सकें बादलों से
        धरती पर अपनी अकड़ में जाने नहीं देती उन्हें
धरती को लगता है की  लहरों को रोक लेगी
  बादलों से मिलने से
   उसे क्या पता नासमझ को
     कि जिस प्यार को किनारों से पकड़ रखा है उसने
       आसमान से देखो तो उसके तन मन पर
        सिर्फ बादल ही बादल हैं। .


 

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