Tuesday, May 22, 2012

प्रेम

तुम सकुचाये पल भर को

नयना दृग भर आये यूँ

दूर तलक फैले नभ में

मेघ तभी घिर आये ज्यूँ

मतवारे मन के आँगन में

हस के फूल खिलने वालों

गरज बरसती बारिश में यूँ

नृत्य सुधा बरसाने वालों

गिरिधर के न आने से ये रास नहीं रुका करता है

कुछ पल दूर बिताने से ये प्रेम नहीं मरा करता है !!

3 comments:

  1. Bahuth achha likhaa hai aapne Rishi Jee..:-)Glad to have met u here..Keep blogging..:-)

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  2. wah wah !! ये प्रेम नहीं मरा करता है !! bahut sahi :)

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  3. short, subtle, and very nice ending. . :)
    I strongly think you can make it longer, without compromising on its quality. . lovely lines..

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Thank you for taking time out to comment on this creation. Happy Reading . Please revisit.