Thursday, May 24, 2012

life को compress कर थोडा ..

मैं छोटा सा नन्हा सा था


जब माँ की गोदी में था

घुटनों के बल चलता था

अपने घर के आँगन को मैं

खुशियों से भर देता था

फिर आया प्यारा सा बचपन

खेल खिलोने लाया बचपन

गाँव के खलिहानों में

खेतों में बाजारों में

तफरी खूब मचाता बचपन

बचपन से यौवन फिर आया

अपने संग रवानी लाया

खेल खिलोने सब बदल गए

मौजों के वो सावन लाया

पतझड़ में वो गरम पियाली

बारिश में गरम समोसे लाया

टिप टिप गिरती बूंदों के संग

प्रेम ने मुझको नाच नचाया

यौवन का ये रास रंग

प्रतिदिन होली और दिवाली लाया

समय बीत गया कब कैसे

कोई न चेतावनी लाया



जीवन होता थोडा ही

बस बचपन और जवानी लता

नहीं बुढ़ापा नहीं बीमारी

तेरे दर मैं हँसता आता

करूँ प्रार्थना तुझसे से हे हरि

life को compress कर थोडा

दे खुशियों से भर इसको दाता !

Tuesday, May 22, 2012

प्रेम

तुम सकुचाये पल भर को

नयना दृग भर आये यूँ

दूर तलक फैले नभ में

मेघ तभी घिर आये ज्यूँ

मतवारे मन के आँगन में

हस के फूल खिलने वालों

गरज बरसती बारिश में यूँ

नृत्य सुधा बरसाने वालों

गिरिधर के न आने से ये रास नहीं रुका करता है

कुछ पल दूर बिताने से ये प्रेम नहीं मरा करता है !!

Monday, May 21, 2012

समंदर की लहरों पर तैरती राख सा

इन्तेजार की हद बीती


हर गुजरते साये के संग

टकटकी लगी नज़रों पे अब

कुछ तो रहम कर

शर्मिंदा मैं क्यूँ होऊं सोचता हूँ

मैं पहुच गया तू ही नहीं आई

समंदर की लहरों पर तैरती राख सा हूँ

बरबस उछलता और गिरता

किनारे पर तुझसे मिलन की आस में

राख बन रेत पर फैला हुआ हूँ

राह देखता हूँ तेरी

कभी किसी शाम मुझ पर भी नंगे पैर चल ..