बंजारा  हूँ  भटकने  पे  भरोसा  है  मेरा
जहाँ  शाम  बस  वही बसेरा  है  मेरा |
मंजिल  है  न  राही, ना कोई  साथ  में चलता 
जो  राह में  मिलाता  है , वहीँ  दोस्त  है  मेरा |
साहिल  समझ  रहा  है  की  में  मंजिल  को  पा गया
किनारा  नहीं , मंजिल  मजधार   है  मेरा |
रुक  जाये  अगर  नदिया  कहीं  तो  उस  पर  चला  जाऊं  मैं
इस  धार के  उस  पर  कही  प्यार  है  मेरा |
यह कविता मेरे मित्र विवेक और  मेरा संयुक्त प्रयास है| इस रचना के साथ मैं इस ब्लॉग पर विवेक को आमंत्रित कर रहा हूँ और आशा करता हूँ की हम साथ बहुत सी नयी कृतियाँ प्रस्तुत करेंगे |
 
 
Ati Sundar prayas ..Vanita
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