ये शहर अपना सा नहीं है
हर गली खाली सी है
बाजार के दिनों में
भीड़ में खडा सा हूँ बस
ज़िन्दगी की ज़ददो ज़हद में
फंसा हुआ सा
मायूस एक मुसकान होठों पर लिए फिरता हूँ
सबके हालात से वाकिफ
पर अपने से अनजान
खाली कमरे सा शहर है
हर कोना दूसरे से दूर
खिड़की पर एक चिडिया बैठती थी कभी
अब वो भी नहीं है
दरवाजे से बाहर दूर तक खाली सड़क है
गली के कोने पर कुछ आवारा लड़के खड़े होते थे हमेशा
जाने किस धुन में
जैसे सारी दुनिया उन्ही की हो
मेरा तो बस ये कमरा है
खाली सा
इसके चारो कोने मुझसे कहते है
इक दोस्त ज़रूरी है इस शहर में !!!
wah kamal kar diya..vintage rishi stuff..timeless beauty
ReplyDeleteBehad sundar rachna...ham sabhee ek sachhe dost kee talashme rahte hain!
ReplyDeletehttp://shamasansmaran.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
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depicts the fear of lonliness that we all have inside us very beautifully.. I luved this one :)
ReplyDeleteJanab,
ReplyDeleteaapki yeh rachna mujhe bahut pasand hai...isko padh ker hamesha lagta hai ki aapne har us insaan ki daastan apne shabdon se keh di hai jo apno se door kahin anjaan jegah per kissi sirf ek apne insaan ko talaash ker rha hai.. shabdon ka chayan wakai bahut sateek hai..
keep Writing :-)