मातृभूमि की कोख में बढ़ कर
रे अधम नीच ये क्या कर बैठा
जिस आँचल तेरा बचपन खेला
उसको ही मैला कर बैठा ??
दर्पण में कैसे देखेगा
रे मुर्ख कभी तू अपना ये मुख
जिस थाली में क्षुधा मिटाई
उसको ही छलनी कर बैठा ?
मान भूल गया अपना तू क्या
अरि को ही अपना कर बैठा
रे दुष्ट न बन वो कायर जो
राष्ट्र मान बौना कर बैठा ...