रे बसंत  ! ये हवा कहाँ से ले आया
मंद मंद मनमोहक सी ये
                 गंध कहाँ से ले आया ,
पतझड़ से व्याकुल वृक्षों पर
                 अब नवजीवन की कोपल है ,
रे बसंत  ! इस मृत जीवन के
                 प्राण कहाँ से ले आया !!
प्रकृति प्रसन्न मन आनंदित
                 हर्षित पुलकित नर नारायण ,
कोयल की कूहू कूहू से
                 अब चहक रहा है चंचल मन ,
रे बसंत ! मनभावन ये
                 संगीत कहाँ से ले आया  !!
कांतिहीन इस चेहरे की
                 मुस्कान कहाँ से ले आया ,
ॐ  आनंदमय ॐ शांतिमय
                 चरितार्थ हो रहा हर क्षण है ,
रे बसंत  ! इस व्यथित ह्रदय का
                 चैन कहाँ से ले आया ,
रे बसंत ! इस नवजीवन का 
                  सन्देश कहाँ से ले आया !!
 
