ये शहर अपना सा नहीं है
हर गली खाली सी है
बाजार के दिनों में
भीड़ में खडा सा हूँ बस
ज़िन्दगी की ज़ददो ज़हद में
फंसा हुआ सा
मायूस एक मुसकान होठों पर लिए फिरता हूँ
सबके हालात से वाकिफ
पर अपने से अनजान
खाली कमरे सा शहर है
हर कोना दूसरे से दूर
खिड़की पर एक चिडिया बैठती थी कभी
अब वो भी नहीं है
दरवाजे से बाहर दूर तक खाली सड़क है
गली के कोने पर कुछ आवारा लड़के खड़े होते थे हमेशा
जाने किस धुन में
जैसे सारी दुनिया उन्ही की हो
मेरा तो बस ये कमरा है
खाली सा
इसके चारो कोने मुझसे कहते है
इक दोस्त ज़रूरी है इस शहर में !!!