मजबूर  सा  हूँ  मैं  
वक़्त  के  हाथ  कुछ  
इतिहास यूँ  
 ही   लौट   आता  है  
मेरे 
जब  पास  कुछ 
सोच  
लेता  हूँ  सदा 
कर  पायेगा 
न  ये  इस  बार  कुछ 
फिर  
वही  होता  है 
जो  
होता  रहा  है  
सालों  से  कुछ 
मैं  
खड़ा  रह  जाता   हूँ  
दंग  
यूँ  मजबूर  कुछ 
चाह  के  भी   
छोड़  पता  नहीं 
मैं  
दामन  दर्द  का  
हर  बार  सा 
इस  बार  भी  
लिख  गया  ऐसा 
इतिहास   कुछ    
बाँध  बैठा  हूँ  मैं  
दिल  को  
कच्चे   धागों  से  तेरे 
इस  कदर  तेरी  जुदाई  
ले  गयी 
मेरे  दीवानेपन  का  
इम्तेहान  कुछ  
एक  अजब  सा  ही   नशा  है 
इन्तेजार  का  तेरे 
इस  बार  जो  
तुम  गए 
बढ़  गया मेरे 
दर्द  का  एहसास  कुछ
 
