Tuesday, April 7, 2015

सागर, धरती और बादल

 
 

सागर की लहरों पर तैरते बादलों के टुकड़े देख
 मैं समझ नहीं  पाया उनका साथ
  कितने दूर लगते थे  ज़मीन से उनके रिश्ते
   दूर क्षितिज पर ही मिलते होंगे ये  सोचता था मैं
    रेतीले किनारों पर धरती ने सागर को  बांध रखा है ऐसे 
     कि बादलों से सागर को कभी मिलने न देगी जैसे
मैं आसमान में बैठा देखता हूँ  ये सब
  लहरों की छटपटाहट
   रेत पर उसकी धरती से लड़ाई
     धरती से अपना हाथ छुड़ाने के उनकी कोशिश
       कि मिल सकें बादलों से
        धरती पर अपनी अकड़ में जाने नहीं देती उन्हें
धरती को लगता है की  लहरों को रोक लेगी
  बादलों से मिलने से
   उसे क्या पता नासमझ को
     कि जिस प्यार को किनारों से पकड़ रखा है उसने
       आसमान से देखो तो उसके तन मन पर
        सिर्फ बादल ही बादल हैं। .


 

Tuesday, January 28, 2014

मैं नासमझ ..

 मेरी खिड़की के बाहर का वो पेड़
उस  से ज्यादा मुझे गुजरते वक्त का एहसास कोई  नहीं दिलाता
नए पत्ते नयी डालियाँ
नयी कोपलें नयी बौरें
उनका वो नया हरा रंग
सब मुझे देख मुस्काते हैं,
"तुम तो बरसों पुराने हो गए हो "
यही कह कह चिढ़ाते हैं
मैं भी अकड़ कर मुह बनाता हूँ
"मैं पुराना ही सही अब तक नाबाद हूँ ,
हैसियत ही क्या है तुम्हारी ,
तुम्हारी तरह आता जाता नहीं "
पर वक्त  और मौसम के थपेड़े
जितने वो देखते हैं
उसका एक हिस्सा भी मेरे नसीब नहीं आता
न मैंने  धूप में जिंदगी बितायी
न कभी ठिठुरती ठंड में रात बितायी
फिर भी मैं नाबाद होने का घमंड करता हूँ
डाल पर लगे पत्ते मेरी इसी बेवकूफी पर
हस हस कर डाल से गिर  जाते हैं
और मैं नासमझ उसे पतझड़  समझ बैठता हूँ

Monday, January 13, 2014

पूछा आज सुबह खुद से..

आज मैंने अपनी किताब से दो पन्ने गायब देखे
हताशा में आगे पीछे के पन्ने गिने
पर कोई फायदा हुआ
खैर उस किताब को बगल में रख
आगे बढ़ गया
बरसों से अपनी जिंदगी के अनचाहे पन्नों को
बगैर सोचे मैं निकाल कर फेकता रहा हूँ
कोई मेरी जिंदगी कि किताब पढ़ने बैठा तो
कितना हताश और परेशां होगा
पहले के सालों से तो जैसे कोई रिश्ता ही नहीं रहा मेरा
मैं अपने बचपन स्कूल या कॉलेज को
मेरे दोस्तों कि तरह याद नहीं करता
शायद कभी नहीं करता
फिर सोचता हूँ अभी मेरी जिंदगी पहले से
कहीं ज्यादा खुश और रोमांचक है
इसीलिए शायद पुरानी बातें याद नहीं आती
सच में ऐसा है क्या ?
पूछा आज सुबह खुद से
अब तक जवाब नहीं आया !!

Monday, January 21, 2013

यादों की लाशें ..

अधमरी सी सुबह में

तुम्हे बर्फ में लाशें खोजते देखा

कल रात क्या हुआ

कुछ बताओगी

तुम्हारी ऑंखें खुली हुई थीं

पर होश में नहीं लग रही थी तुम

सहमी हुई तो नहीं

पर बिखरी हुई लग रही थी

क्या हुआ अगर वो नहीं रहा

और आएंगे

तुम्हरे ज़हन में बरसों से जमी बर्फ से

उसकी यादों की लाशें मत उखाड़ो ..

Monday, January 14, 2013

सच से होते हैं अनजान ये चेहरे ..


भीड़ में हसते चेहरे

खोये खोये बदहवास चेहरे

झूठ बोलते चेहरे

प्यार के वादे करते चेहरे

मुझे अकेला देख अपने अकेलेपन से डरते चेहरे

उसी डर को छुपाने को किसी और का हाथ पकड़ मुस्कुराते चेहरे

छोटे लकड़ी के ठेलों के पीछे खड़े उदास चहरे

उन्ही ठेलों पर बेफालतू बातें बनाते चेहरे

अपनी रोजी रोटी कमाने में मशगूल चेहरे

तरह तरह के चेहरे दिखते हैं बाजार में

सब में बस एक समानता होती है

सच से होते हैं अनजान ये चेहरे

Tuesday, January 8, 2013

रूद्रके तांडव की राह देख रहा हूँ ..

संवेदनशीलता का उड़ता उपहास देख रहाहूँ

महाभारत से अबतक सिर्फ येबदलाव देख रहा हूँ

द्रौपदी चीर हरण पर महात्माओं ने तब नजरें झुकली थीं

अब तो सब पर दुह्स्सासन का प्रभाव देख रहा हूँ

मनु पुत्र अब कहाँगए , कहाँ गए सब धर्मराज

दानवों के अट्ठाहसमें , उनके बढ़ते दुस्साहस से

धर्म का प्रतिपलनाश देख रहा हूँ

मानवता पर भीषणअत्याचार देख रहा हूँ

देख रहा हूँ अर्थियों पर होती राजनीति

क्षेत्रवाद से हताहत एक राष्ट्र देख रहा हूँ

कलि के युगका अंत करोअब हे प्रभु

प्रलय वाहक रूद्रके तांडव की राह देख रहा हूँ

Sunday, January 6, 2013

और क्या लिखूं ..

क्या लिख रहे हो

पान वाले भैया ने पूछा मुझसे

"सोच रहा हूँ क्या लिखूं ,

ख्वाबों पर लिख चुका  हूँ

 सच झूठ सब लिख चुका हूँ

किसी के साथ और अकेलेपन पर

बंद खिडकियों और बंद दरवाजों

सब पर लिख चुका हूँ

लिख चुका हूँ आँखों पर

उन होठों पर लिख चुका हूँ

खुली बाँहों और बंद दिलों पर लिख चुका हूँ

छोटी गुड़िया पर लिख चुका हूँ और

सफ़ेद बालों वाली बुढ़िया पर लिख चुका हूँ

भ्रष्ट नेताओं पर और कामचोर बाबुओं पर लिख चुका हूँ

लिख चुका हूँ   अपने दिल का हाल

अपने देश के हालात  भी लिख चुका हूँ

अब तुम ही  बताओ भैया

और क्या लिखूं "